बैसाखी पर चल रहे झारखण्ड को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करती हेमन्त सरकार 

ऐतिहासिक तौर पर बाबूलाल मरांडी काल से शुरू हुआ राज्य दोहन सिलसिला रघुवर काल तक में, झारखण्ड को बैसाखी पर ला खड़ा किया. खली खजाने को लेकर स्वेतपत्र जारी होना इसके स्पष्ट उदाहरण.

रांची : झारखण्ड में गरीबी अधिकार हनन की समस्या नई नहीं, झारखण्ड गठन काल से है. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी काल से शुरू हुई राज्य के दोहन का इतिहास रघुवर काल तक में, झारखण्ड को बैसाखी पर ला खड़ा किया. क्योंकि भाजपा आइडियोलॉजी के तहत राज्य के महापुरुषों को उनके विचार सहित भुलाया गया और अधिकार हनन की संस्कृति की शुरुआत भी हुई. नतीजतन, सामाजिक-शैक्षणिक-आर्थिक-सांस्कृतिक सपनों पर गठित झारखण्ड का सच विस्थापन, मानवतस्करी, गरीबी जैसे त्रासदी ने लिया. ज्ञात हो, रघुवर सरकार के बाद हेमन्त सराकार में खाली खजाने के मद्देनजर स्वेतपत्र जारी होना तथ्य के स्पष्ट उदाहरण हो सकते है.

हेमन्त सरकार में झारखण्ड के अधिकारों के हित में उन तमाम नीतियों-पोथियों में संशोधन कर झारखंडी हितों, रोजगार जैसे अधिकार को सुनिश्चित करने का प्रयास सराहनीय व ऐतिहासिक है. ग्रामिण अर्थव्यवस्था के मजबूतीकरण समेत राज्य की अर्थव्यवस्था, उध्योगिकीकरण, पर्यटन, उर्जा, आदिवासी-दलित, बहुजन-गरीब, सामाजिक-सांस्कृतिक, शिक्षा-शिक्षक, ड्रॉप आउट, खेल-खलाड़ी, महिला सशक्तिकरण, रिक्त पदों को भरना, कृषि-किसान-श्रमिक, वनोत्पाद, क़ानून व्यवस्था, सर्वजन पेंशन जैसे तमाम मूल भूत आयामों में लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल कर, राज्य को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने प्रयास हुआ है. 

मसलन, मौजूदा दौर में हेमन्त सरकार की नीतियों पर देश के कई जाने-माने उद्योगपति व औद्योगिक घराने ने भरोसा जताया हैं. जिसके अक्स में अज़ीम प्रेमजी, डालमिया समूह, रतन टाटा जैसे नाम प्रमुखता से शामिल हैं. हड़िया-दारू बेचने को अभिशप्त महिलाए स्वरोजगार कर सामान पूर्वक जीवन व्यतीत करना, दलित-आदिवासी-बहुजन के स्वरोजगार में सशक्त कदम बढ़ाया जाना, निजीकरण से इतर राज्य के युवाओं की रिक्त पदों पर नवनियुक्ति होना, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के शासन काल में बैसाखी पर खड़े राज्य को अपने पैरों पर खड़ा करने के तथ्य की पुष्टि करती है. 

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