झारखण्ड : जनता का दृष्टिकोण – आरएसएस के वनवासी बाबूलाल मरांडी का मूलवासियों की प्रखर आवाज, स्वर्गीय जगरनाथ महतो के बीमारी पर मानवतारहित हमला -एक सुनियोजित संघी षड्यंत्र?
रांची : कुतुबमीनार से कूद जाउंगा – कूदे? नहीं. जेवीएम के बिकाऊ विधायकों को सजा दिलाऊँगा -सजा दिलाए? नहीं. मैं आरएसएस का वनवासी हूँ. आदिवासियों की आवाज हूँ – मणिपुर पर कुछ बोले? नहीं. सरना धर्मकोड पर बोले? नहीं. बीजेपी नेताओं के द्वारा हुए आदिवासी प्रताड़ना पर बोले? नहीं. बोले! किस पर, जीवन मृत्यु से लड़ रहे झारखंडी पुत्र, शिक्षा मंत्री स्वर्गीय जगरनाथ महतो के बीमारी पर. यह शब्द लगभग आज सभी झारखण्ड वासियों का प्रमुख सवाल भर नहीं सच भी है.
झारखण्ड के बुद्धिजीवियों व आम जन का स्पष्ट समीक्षा है -चूँकि बीजेपी एक सामन्ती मानसिकता से उभरी पार्टी है. मसलन, बतौर संघी बाबूलाल मरांडी का व्यक्तित्व मौकापरस्त राजनीति के इर्द-गिर्द घूमना कोई अचंभित करने वाला दृश्य नहीं है. राज्य की जनता स्वर्गीय जगरनाथ महतो के पुरुषार्थ का ही उद्धरण देते हुए सवाल उठाने से नहीं चुकते कि जन सेवा करते हुए कोरोना से ग्रसित एक बीमार जन नेता पर कैसे बाबूलाल मरांडी जनता को भ्रमित करने वाला राजनीति कर सकते हैं?
झारखण्डी जनता का सपष्ट मानना है कि चूंकि स्व. जगरनाथ महतो ने सरकारी शिक्षा की मजबूती के दिशा में कदम बढाया. पारा शिक्षक, आगनबाड़ी जैसे झारखंडी भाई-बहनों न्याय दिया. 1932 नीति की मांग के राजनितिक आवाज बने. इसलिए, संघ, बीजेपी के राजनीति के अक्स में बाबूलाल मरांडी के द्वारा वह दुश्मन घोषित करार दिए गए.
मसलन, बतौर संघ के वनवासी बाबुलाल जी का उनके बीमारी को निशाना बनाना स्व. जगरनाथ महतो के जननेता के अक्स को धूमिल करने का एक सामन्ती षड्यंत्र भर है. पूर्व के महापुरुषों को इतिहास से बेदखल करने के भांति ही यह झारखण्ड के वर्तमान मूल जनता के सशक्त आवाज़ को, भ्रम के आसरे दरकिनार करने का ओंछी सामन्ती प्रयास भर है.