झारखण्ड : हेमन्त सरकार की कार्य शैली में न केवल भाजपा के विचारधारा की पोल खुल गई है. पंचायत चुनाव में मुश्किलें बढ़ने से भाजपा नेताओं में अस्तित्व संरक्षण को लेकर खलबली भी मच गई है. बाबूलाल जी स्वयं न्यायाधीश बन फैसला सुनाने को विवश.
राँची : भाजपा नेता एक तरफ कहती है कि उसकी पार्टी लोकतांत्रिक है और संवैधानिक मूल्यों पर भरोसा करती है. तो दूसरी तरफ संघ देश में अनुसूचित जातियों के हिमायती होने का दंभ भारती है. लेकिन झारखण्ड के हेमन्त सरकार की कार्य शैली में न केवल भाजपा के विचारधारा की पोल खुल गई है. पंचायत चुनाव में मुश्किलें बढ़ने से भाजपा नेताओं में अस्तित्व संरक्षण को लेकर भी खलबली भी मच गई है. मसलन, एक तरफ राज्य में भाजपा के केन्द्रीय नेता-मंत्रियों का लागू अचार संहिता के बीच दौरा हो रहा है तो दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा नेता स्वयं न्यायधीश बन फैसले सूनाने से नहीं चुक रहे हैं.
पंचायत चुनाव में भाजपा ने जो लोग लगाए हैं, उन्हें मदद पहुंचाने के लिए वह रोज सरकार के खिलाफ फ़र्ज़ी बातें फैला रही है. ज्ञात हो, मुख्यमंत्री पहले ही अपने चुनावी हलफनामा में खान लीज का जिक्र किया हैं. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9(ए) के तहत माइनिंग लीज का मामला ऑफगुड्स बिजनेस के श्रेणी में भी नहीं आता. तीन निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि माइनिंग लीज ऐसी संविदा नहीं है, जिसकी चर्चा धारा-9(ए) में की गई है. मसलन, माइनिंग लीज के आधार पर हेमन्त सोरेन को अयोग्य करार देना गलत होगा. लेकिन बाबूलाल मरांडी स्वयं न्यायाधीश बन फैसला सुना रहे हैं. तमाम परिस्थियाँ भाजपा की खलबली दर्शाती है.
झामुमों विधायक सुदिव्य कुमार द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर सामने रखा सरकार का पक्ष
हेमन्त सरकार में ग़रीब पेंशन, राशन, शिक्षा प्राप्त कर रहे है. महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है, अनुसूचित जातियां-जनजातियां अधिकार प्राप्त कर रहे है. युवाओं को प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए मुफ्त कोचिंग प्राप्त कर रहे है. किसान और कृषि आधुनिता के तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में भाजपा नेताओं की जड़ें हिल गई है. नतीजतन, भाजपा अपने तमाम साम-दाम-दंड-भेद वाली नीतियों के साथ मैदान में कूद चुकी है. जबकि कायदे से भाजपा को अगले विधानसभा चुनाव के इन्तजार करना चाहिए. इस संदर्भ में झामुमों विधायक सुदिव्य कुमार द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार का पक्ष भी सामने रखा गया है.