हेमन्त सरकार में औषधीय वाटिका दे रही है विलुप्त होते औषधीय पौधों को नया जीवन 

झारखण्ड : कोरोनाकाल में वरदान साबित हुई है औषधीय वाटिका. झारखण्ड राज्य में अबतक 17 जिलो के 35 प्रखंड में 6500 किसानों का जुड़ाव बना है औषधीय वाटिका से

रांची : झारखण्ड को प्रकृति ने सघन जंगलों नवाजा है. इन सघन जंगलों में औषधीय पौधों की भरमार रही है. लेकिन पूर्व की सत्ताओं की नीतियों के अक्स में न केवल यह क्षेत्र अनदेखा रहा, खनन लूट तले रौंदा भी गया है. विडंबना है खुद को भारतीय संस्कृति का संरक्षक बताने वाली पूर्व की सत्ता आयुर्वेद को परिभाषित करने में करोड़ों तो फूंकी, लेकिन द्वारा ज़मीनी स्तर पर इस अमूल्य सम्पदा के संरक्षण में कुछ नहीं किया गया. चूँकि यह क्षेत्र वोट उघाही से अधिक राज्य के मूल जनता को रोज़गार उपलब्ध करा सकती थी. मसलन, उस डबल इंजन मानसिकता के राजनीतिक चौसर पर यह क्षेत्र फिट नहीं बैठा. नतीजतन उन्होंने इस अमूल्य सम्पदा को अपने एजेंडे से दूर रखना ही बेहतर समझा.

लेकिन, झारखण्ड के मौजूदा हेमन्त सत्ता में राज्य की इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण में औषधीय वाटिका के रूप में सराहनीय कदम उठाये गए हैं. खूंटी के बिरहु बड़का टोली की अनिता सांगा द्वारा औषधीय वाटिका के तहत तुलसी, गिलोय , चिरोंजी, सतावर, घोडवार आदि औषधीय पौधों की नर्सरी के रूप में इस दिशा में बढ़ाया गया कदम, वर्तमान में उनकी आजीविका का साधन बन कर उभरा है. नवीन आजीविका किसान उत्पादक समूह की सदस्य अनिता सांगा 50 से अधिक औषधीय पौधों की खेती कर कर रही हैं. पहले उसकी आजीविका सिर्फ वनोपज पर निर्भर थी. और सखी मंडल के साथ मिल कर औषधीय पौधों और फलों की नर्सरी से अच्छी आमदनी कर रही रही हैं.

औषधीय वाटिका से जुड़ी सखी मंडल के दीदियां बढ़ा रही हैं अपनी इम्युनिटी 

अनिता की नर्सरी के पौधे आज औषधीय वाटिका से जुड़ी सखी मंडल के दीदियों की इम्युनिटी बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के तहत औषधीय एवं सुगंधित पौधो की खेती की शुरुआत कर आज अनिता जैसी कई महिलाएं औषधीय पौध नर्सरी का सफल संचालन कर रहीं हैं. हजारों महिलाएं अपने घरों में औषधीय वाटिका बनाकर अपने परिवार को स्वस्थ जीवन का उपहार दे रही हैं. इस पहल से एक ओर जहां ग्रामीण महिलाओं को औषधीय पौधे सस्ते दर पर नर्सरी के माध्यम से उपलब्ध हो रहे हैं, वहीं राज्य की जनजातीय चिकित्सा पद्धति होड़ोपैथी को हुआ है

कोरोना जैसे संक्रमण काल में वरदान साबित हुई है औषधीय वाटिका

औषधीय वाटिका का लक्ष्य सखी मंडल की दीदियों के जरिए पुरातन प्राकृतिक उपायों से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना एवं रोग निवारक उपायों को बढ़ावा देना है. इससे एक ओर जहां नेचुरोपैथी एवं होड़ोपैथी को पुनर्जीवित किया जा रहा है, वहीं गांव की महिलाएं की आमदनी के राह भी प्रसस्त हुए हैं. हज़ारीबाग जिले के दारु प्रखंड अंतर्गत पेटो गांव की आशा देवी पिछले डेढ़ साल से औषधीय वाटिका परियोजना से जुड़ कर न सिर्फ कोरोना के कठिन समय में कारगर तुलसी , गिलोय, हरसिंगार सहित 30 से अधिक औषधीय पौधों की खेती कर अपने परिवार और आसपास के लोगो की मदद की, औषधीय पौधों की बिक्री कर आमदनी भी कर रही है.

17 जिलो के 35 प्रखंडों में 6500 किसानों के दायरे में चार रही यह परियोजना

पिछले कुछ दशकों में औषधीय पौधो की कमी के कारण होडोपैथी विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी थी. ऐसे में झारखण्ड में औषधीय वाटिका जैसे पहल के जरिये प्राचीन औषधीय चिकत्सा प्रणालियों को पुनर्जीवित कर इसके संरक्षण को बढ़ावा दिया गया है. वर्तमान में यह परियोजना राज्य के 17 जिलों के 35 प्रखंड में 6500 किसानों के बीच चलाई जा रही है. इस परियोजना अंतर्गत 30 से अधिक औषधीय और सुंगधित पौधे जैसे  हर्रा, बहेड़ा, करंज, कुसुम, लेमनग्रास आदि को बढ़ावा दिया जा रहा  है. इसके अलावा वन आधारित औषधीय पौधों का वैज्ञानिक संग्रहण, खेती तथा सुगंधित पौधे को बढ़ावा देकर राज्य में आजीविका के नये अवसर सृजन करने का प्रयास भी हो रहे हैं.

सखी मंडल की बहनों को औषधीय पौधों की खेती से जोड़कर सशक्त अभिनव आजीविका का अवसर उपलब्ध कराया जा रहा है. अब तक करीब 10 औषधीय पौधो की नर्सरी का संचालन ग्रामीण महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है. आने वाले दिनों में नेशनल मेडिसिनल प्लान्ट बोर्ड के साथ अभिसरण के जरिए 50 से ज्यादा नर्सरी की स्थापना का लक्ष्य है. इस पहल से करीब 11 हजार ग्रामीण परिवार औषधीय वाटिका से जुड़ेंगे, जिसका लाभ एक लाख से अधिक परिवारों को मिलेगा.

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