ईडी जाँच : झारखण्ड में सभी जाँच का अंतिम सिरा बीजेपी की डबल इंजन सरकार के द्वार ही पहुँच कर रुकती है. और बीजेपी के द्वार पर मामला पहुँचते ही पूरी तरह से शांत हो जाने से क्या ईडी के कार्यप्रणाली व निष्ठा पर सवाल नहीं उठता?
रांची : सुप्रीम कोर्ट के द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के तीसरे सेवा विस्तार पर सवाल उठाया जाना गैर बीजेपी शासित राज्य सरकारों के आरोपों को मजबूती दे सकता है. सवाल -‘कोई एक व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है’? ‘क्या संगठन में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है जो उनका काम कर सके? 2023 के बाद एजेंसी का क्या होगा, जब वे रिटायर हो जाएंगे?’ निश्चित रूप से क्या यह एक गंभीर सवाल नहीं है?
ज्ञात हो, झारखण्ड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने स्पष्ट कहा कि राज्य में बीजेपी काल में घोटालों की जांच हो रही है. जांच एजेंसी अधिकारियों को समन भेजती है. मीडिया में छापेमारी में कागजातों और नकदी बरामदगी की खबर आती हैं, लेकिन इससे सम्बंधित औपचारिक सूचनाएं जारी नहीं होते. क्या सरकारी संस्थान ऐसा केवल गोदी मीडिया को हेडलाइन दे बीजेपी को लाभ नहीं पहुँचा रहा? और दूसरे दलों को बदनाम करने का षड्यंत्र नहीं रच रहा है?
यही नहीं, रघुवर सरकार के पूर्व मंत्री व मौजूदा निर्दलीय विधायक सरयू राय के तथ्यात्मक सवालों से इतर कार्रवाई होना क्या ईडी के निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह अंकित नहीं करते हैं? ज्ञात हो, झारखण्ड में तमाम जाँच का अंतिम सिरा पूर्व के बीजेपी की डबल इंजन सरकार के द्वार ही पहुँच कर रुकती है. लेकिन, बीजेपी के द्वार पर मामला पहुँचते ही पूरी तरह से शांत हो जाता है. फिर भी ईडी के कार्यप्रणाली पर सवाल क्यों नहीं उठता? और क्या जाँच के प्रायोजित मंशा को उजारा नहीं करता?
ईडी जाँच को लेकर सीएम भूपेश बघेल का तीखा बयान
ऐसे में छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल का तीखा बयान ईडी के क्रियाकलाप व निष्ठा को आइना दिखाता है. ज्ञात हो, ED ने 2000 करोड रुपए के आसपास शराब घोटाले का दावा किया है. सीएम बघेल ने स्पष्ट कहा आप 𝐄𝐧𝐟𝐨𝐫𝐜𝐞𝐦𝐞𝐧𝐭 𝐃𝐢𝐫𝐞𝐜𝐭𝐨𝐫𝐚𝐭𝐞 हैं, आप हवा में बात नहीं कर सकते. आपको बताना पड़ेगा कि पैसा अगर है तो कहाँ लगा. जहाँ छापा मारा गया हैं, सभी जानकारी बताए ईडी. ईडी नान घोटाला मामले की जांच क्यों नहीं करती? डॉ. रमन सिंह से पूछताछ क्यों नहीं हुआ?
100 करोड़ रिश्वत का आरोप लगाने वाले ईडी-सीबीआई के पास 70 करोड़ का सबूत ही नहीं
ऐसा केवल झारखण्ड में ही नहीं हो रहा है. दिल्ली सरकार तक इससे अछूता नहीं रही है. राउज एवेन्यू कोर्ट का आदेश से मनगढ़ंत शराब घोटाला खड़ा करने का सच सामने आया है. क्या इसके खिलाफ सकार्रवाई नहीं होनी चाहिए? ईडी-सीबीआई ने जांच के दौरान कहा था कि 100 करोड़ रुपये की रिश्वत ली गई है. वही ईडी-सीबीआई ने कहा कि 100 करोड़ में से 70 करोड़ रुपये का उसके पास कोई सबूत ही नहीं है. क्या इस प्रसंग से इनकी निष्ठा पर सवाल नहीं उठते?
वहीँ दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के वकीलों का कहना है कि आबकारी नीति कैबिनेट का सामूहिक फैसला था. जिसकी संस्तुति एक्साइज और वित्त विभागों ने की थी. जिसपर मोदी सरकार द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर ने दस्तखत भी था. सिसोदिया जेल में हैं. क्या संस्थानों के माध्यम से ऐसा केवल गैर बीजेपी सरकारों को विकास कार्य से रोकने के लिए नहीं हो रहा है?