क्या एक झारखंडी नेता होने के नाते सुदेश महतो व उसके पार्टी का फर्ज नहीं है कि राजनीति से परे झारखण्ड के मूल अधिकारों को लेकर अपने गठबंधन के तहत केंद्र पर प्रेशर बनाए. एक गभीर सवाल?
रांची : मोदी व बीजेपी शासन पर चुटकी लेते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मण्डल का झारखण्ड के सीएम हेमंत सोरेन को स्वयं शुक्रिया कहना. और साथ ही झारखण्ड के पूरे ओबीसी समाज से सीएम को धन्यवाद कहने हेतु निवेदन करना, प्रदेश के बीजेपी व उसके सहयोगी राजनीति को आईना दिखाती है. ज्ञात हो, हेमन्त सरकार में 11 नवंबर 2022 को एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण विधेयक विधानसभा से पारित कर 9 वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु केंद्र को भेजा गया है.

जबकि पूर्व की आजसू-भाजपा के गठबंधन सत्ता के अक्स में राज्य में ओबीसी आरक्षण को घटाकर मात्र 14% कर दिया गया था. ऐसे में रघुवर दास का आरक्षण जैसे विषय पर बडबोलेपन का परिचय देना, माना जा सकता है यह संघ के चेला होने का फर्ज निभा रहे हैं. लेकिन, उसके सहयोगी आजसू सुप्रीमों का आरक्षण पर बोलना क्या उनकी झारखंडी मानसिकता से दूरी व मौकापरस्ती की पराकाष्ठ को दर्शाता है?
ज्ञात हो, आरक्षण वधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद आजसू सुप्रीमों के मुख से एक शब्द न निकलना. ना ही केन्द्रीय सत्ता पर उसका कोई प्रेशुर रणनीति दिखाना, और उसका सीधे रामगढ़ उपचुनाव में वर्तमान सरकार प्र आरक्षण को लेकर हमलावर होना राज्य का दुर्भाग्य नहीं और क्या है. क्या एक झारखंडी होने के नाते सुदेश महतो व उनकी पार्टी का फर्ज नहीं है कि राजनीति से परे झारखण्ड के मूल अधिकारों को लेकर गठबंधन के तहत केंद्र सत्ता पर प्रेशर बनाए. सवाल आप पर ही छोड़ता हूँ.