7 अक्तूबर 2021, लखीमपुर खीरी में राज्य गृहमंत्री अजय मित्र टेनी के बेटे द्वारा चार किसान प्रदर्शनकारियों को गाड़ी के नीचे कुचलकर मार दिये जाने की भयंकर बर्बर घटना घटी. उस दिन उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या स्कूल में “सम्मानित” होने जा रहे थे. किसानों को इसकी सूचना थी. मंत्री का हेलीकॉप्टर हेलीपैड पर उतरने वाला था. किसानों द्वारा हेलीपैड का घेराव किया गया . मौर्या ने सड़क मार्ग से आने का फ़ैसला किया. तो किसानों ने बनबीरपुर गाँव व तिकुनिया गाँव के सड़क पर प्रदर्शन शुरू किया.
अजय मिश्रा टेनी के बेटे की रेड कार्पेट पर गिरफ्तारी
उसी सड़क पर भाजपा नेता टेनी के बेटे ने इस फ़ासीवादी बर्बरता को अंजाम दिया. जवाब में किसान प्रदर्शनकारियों का ग़ुस्सा फूटा. योगी सरकार इस मसले पर जाँच व प्राथमिकी दर्ज करने का आश्वासन देकर मसले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश में है. मृतकों को 45 लाख व घायलों को 10 लाख रुपये के आश्वासन मिले हैं. देश भर में आम लोगों के बीच इस घटना को लेकर ग़ुस्सा और सदमा है. ग़ौरतलब है कि अजय मिश्रा टेनी के बेटे के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज होने के बाद कई दिनों बाद रेड कार्पेट पर गिरफ़्तार हुई.
योगी सरकार ने ड्राइवर पर फ़ार्मरों द्वारा पथराव का इल्ज़ाम डालकर मंत्री और मंत्री के बेटे को बचाने की क़वायद में लगी है. कांग्रेस, सपा, बसपा आदि के नेताओं को भी लखीमपुर खीरी में घटना-स्थल पर नहीं जाने दिया गया और कइयों को हिरासत में भी ले लिया गया. बहरहाल, लखीमपुर खीरी की यह घटना फ़ासीवाद की उस सच्चाई को उजागर करती है जो राजनीतिक व आर्थिक संकट से पैदा होती है. जहाँ वह किसी भी प्रकार के विरोध बर्दाश्त नहीं करती. और जैसे-जैसे फ़ासीवादी शक्तियाँ सत्ता में सुदृढ़ होती जाती हैं, उनका रवैया नग्न तौर पर प्रकट होता जाता है.
मोदी सरकार और योगी सरकार के रवैये से स्थिति स्पष्ट है फासीवादी सत्ता किसान आन्दोलन के दमन के लिए किस स्तर जा सकती है
मोदी सरकार और विशेष तौर पर योगी सरकार के साथ यह स्थिति स्पष्ट होती जा रही है. किसान के आन्दोलन के प्रति भी भाजपा सत्ता वही रवैया अपनाती जा रही है. जिसके अक्स में यदि मज़दूर वर्ग कोई आन्दोलन करता, तो फ़ासीवादी सरकार उसके प्रति यह रवैया पहले दिन ही अपना लेती है. फ़ासीवाद की ख़ासियत है कि समय बीतने के साथ उसका बर्बर चेहरा और भी क्रूर होता जाता है और उसके फ़ासीवादी दमन की ज़द में वह राज्य सरकारें भी आ सकते हैं, जो उनका विरोध करते हैं.
मसलन, किसान आन्दोलन से उन्हें जहाँ असुविधा होगी, वहाँ यह फ़ासीवादी सत्ता ऐसे काण्ड को अंजाम बिना हिचके दे सकती है. वास्तव में, किसानों को विरोध करने के उनके जनवादी अधिकार से वंचित करने की यह एक कोशिश भर है.