झारखण्ड : राज्यपाल के द्वारा 1932 खतियान स्थानीय नीति वापस

झारखण्ड : 1932 खतियान स्थानीय नीति : राज्यपाल ने कहा सरकार विधेयक की वैधानिकता की गंभीरता से समीक्षा करे. ज्ञात हो, इत्तेफाक़न यह वक्तव्य चाईबासा में गृहमंत्री के दिए गए वक्तव्य से मेल खाती है. 

रांची : राज्यपाल के द्वारा 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को वापस कर दिया गया है. उन्होंने लिखा है कि एआईआर 1970 सुप्रीम कोर्ट 422 में गई है कि नियोजन के भी स्पष्ट व्याख्या की गई है कि मामले में किसी भी प्रकार की शर्तें लगाने का अधिकार सिर्फ संसद को है. सरकार इस विधेयक की वैधानिकता की गंभीरता से समीक्षा करे. ज्ञात हो, इत्तेफाक़न यह वक्तव्य चाईबासा में गृहमंत्री के दिए गए वक्तव्य के मेल खाती है. 

स्तानीय

झारखण्ड आन्दोलकारी परिवार के सदस्य उमेश राम के द्वारा ट्विट किया गया है कि झारखण्ड के महामहिम राज्यपाल के द्वारा 1932 खतियान आधारित डोमिसाइल नीति को वापस किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. आर्टिकल 16, रोजगार का अधिकार अन्य राज्यों में साइलेंट क्यों कर दिया गया.  झारखण्ड राज्य के जल, जंगल, जमीन और रोजगार पर मूलवासी और आदिवासी जैसे बासिन्दों का पहला अधिकार बनता है.

कोई भी भारतीय हर किसी राज्य का निवासी नहीं हो सकता सुप्रीम कोर्ट

मामले में उपरोक्त निर्णय से संबंधित एक समाचार पत्र का कटिंग जो लोकसभा सचिवालय, नई दिल्ली से प्रकाशित “समाचार मंजूषा” (जनवरी 2002, अंक 1, पेज न. 8) में प्रकाशित हुआ था, वाइरल हो रहा है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आवासीय योजनाओं का फायदा उठाने के लिए कोई भी भारतीय नागरिक अपने को हर किसी राज्य का स्थाई निवासी नहीं बता सकता. खासकर तब जबकि आवासीय योजना किसी विशेष राज्य के निवासियों के लिए हो. 

न्यायमूर्ति वी. एन. खरे और न्यायमूर्ति बी. एन. अग्रवाल की खंडपीठ ने यह व्यवस्था दी है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी राज्य में स्थाई रूप से रहता है तो वह उस राज्य का निवासी हो जाता है. हाईकोर्ट ने बोर्ड के फैसले को उलटे हुए कहा कि बारीकियों में जाने की बजाय हाईकोर्ट को प्रचलित अर्थ पर ध्यान देना चाहिए था. हाईकोर्ट ने कहा था कि भारत का नागरिक होने के नाते कोई भी व्यक्ति संघ शासित क्षेत्र चंडीगढ़ का स्थाई निवासी अपने आप हो जाता है.

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