हेमन्त सरकार में ओल्ड पेंशन स्कीम पुनर्बहाल से एक लाख लोगों को मिलेगा सामाजिक अधिकार

झारखण्ड : निजीकरण के दौर में, ओल्ड पेंशन स्कीम पुनर्बहाल बाबा साहब अम्बेडकर की लकीरों के तहत बहुसंख्यक आबादी को मिले अधिकारों की संरक्षण में, हेमन्त सरकार का संघर्ष दर्शाता है.

रांची : झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की ओल्ड पेंशन स्कीम पुनर्बहाल करने की कवायद, एक तरफ भाजपा आइडियोलॉजी को लोकतंत्र का आईना दिखाती है, तो वहीं गन अधिकार संरक्षण में दिसुम गुरु शिबू सोरेन सरीखे बहुजन नेताओं की विचार की स्पष्ट तस्वीर पेश करती है. दरअसल, निजीकरण के दौर में, ओल्ड पेंशन स्कीम पुनर्बहाल बाबा साहब अम्बेडकर की लकीरों के तहत बहुसंख्यक आबादी को मिले अधिकारों के संरक्षण में, हेमन्त सरकार का संघर्ष दर्शाता है. मसलन, चहेते पूंजीपतियों के संरक्षण में, तांडव मचाने वाली भाजपा नीतियों के बीच हेमन्त सोरेन के जनहित संरक्षण के संघर्ष के मायने, झारखण्ड समेत देश के बहुसंख्यक आबादी को न केवल समझना होगा, आगे भी बढ़ाना होगा.

ज्ञात हो, झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन द्वारा एलान हुआ है कि 15 अगस्त 2022 जैसे मुबारक-शुभ दिन तक राज्य के सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मियों के पुरानी पेंशन स्कीम पुनर्बहाल की जा सकती है. मुख्यमंत्री का यह संवेदनशील प्रयास जहाँ राज्य के सभी वर्गों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा तो वहीं देश के बहुसंख्यक आबादी के अधिकार के संघर्ष में जीतने का विश्वास, जोश भरेगा. और नीतियों व प्रतीक के अक्स में हो रहे राजनीति में अंतर बता, उसका मार्ग प्रसस्त करेगा. 

मुख्यमंत्री हेमन्त की विचारधारा व सरकार की नीतियां करती है बहुसंख्यक ग़रीब के हितों की वकालत

मुख्यमंत्री का स्पष्ट कहना कि सरकारी कर्मी समाज का अभिन्न अंग बन, सरकारी योजनाओं को, नीतियों को समाज में उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. राज्य के विकास में, बेहतर दिशा देने में, सभी वर्गों के कल्याण में इनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. अतः ऐसे कर्मियों की सामाजिक सुरक्षा के समस्याओं का समाधान सरकार आगे बढ़ कर करेगी. राज्य के पारा शिक्षकों-आंगनबाड़ी कर्मियों की समस्याओं का निदान भी इस सरकार में ही होना, दर्शाता है कि मुख्यमंत्री की विचारधारा व सरकार की नीतियां बहुसंख्यक गरीब के हितों की वकालत प्रथम पायदान पर खड़ा हो कर करती है.

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