1 लाख 70 हज़ार एकड़ जंगल अडाणी को सौंपने वाली बीजेपी सत्ता वन संरक्षण के नाम पर उजाड़ रही है हज़ारों घर

माइनिंग के लिए 1 लाख 70 हज़ार एकड़ प्राचीन जंगल अडाणी को सौंपने वाली मोदी सत्ता, फरीदाबाद में दशकों से बसे हज़ारों घरों को वन संरक्षण के नाम पर उजाड़ रही है. और कॉरपोरेट घरानों के लाखों हेक्टेयर जंगलों और पर्यावासों की तबाही पर आँखें मूँदे सुप्रीम कोर्ट और बिल्डरों के हाथों अरावली की पहाड़ियों का नाश कराने वाली भाजपा की हरियाणा सरकार डेढ़ लाख से भी ज़्यादा आबादी को कोरोना महामारी में बेघर करने पर आमादा है. पिछले महीने की 7 तारीख़ को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-हरियाणा सीमा पर फ़रीदाबाद ज़िले के लाल कुआँ इलाक़ा स्थित खोरी गाँव के दस हज़ार से ज़्यादा घरों को बिना किसी पुनर्वास या मुआवज़े के तोड़ने का फ़ैसला फिर से दुहराया है.

कोर्ट ने हरियाणा सरकार व फ़रीदाबाद नगर निगम को छह हफ़्ते के अन्दर बेदख़ली प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है. खोरी गाँव के क़रीब 20,000 घरों को उजाड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ स्थानीय जनता लगातार लड़ रही है. 30 जून को उनके द्वार प्रदर्शन भी किया गया. विभिन्न जन संगठनों के कार्यकर्ता भी खोरी की मे गरीब अवाम को समर्थन देने के लिए प्रदर्शन में शामिल हुए थे. खट्टर की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बर्बर लाठी चार्ज किया और कई लोगों को हिरासत में लिया. गाँव तक जाने के रास्तों पर भारी पुलिस बैरीकेडिंग की गयी है.

खोरी गाँव के लोगों की है ये माँग

  1. जहाँ झुग्गी वहीं मकान, खोरी को नियमित करो. 
  2. जिन मज़दूरों के घरों को तोड़ा गया है, उनको सरकार मुआवज़ा दे. 
  3. बिजली, पानी की सप्लाई तुरन्त बहाल करो. 
  4. पानी, बिजली की कमी के कारण जितने भी मज़दूरों की मौत हुई, उनके परिजनों को सरकार मुआवज़ा दे.

तमाम दबावों के बावजूद खोरी की जनता अपने घरों को बचाने के लिए लड़ने पर कमर कसे हुए है. ख़ासकर यहाँ की स्त्रियाँ पूरे जोशो-ख़रोश से लड़ने को तैयार हैं.

दशकों से खोरी में बसे हैं हज़ारों घर और क़रीब डेढ़ लाख लोग

इस क्षेत्र में दस हज़ार से अधिक संख्या में घर हैं. जिनमें डेढ़ लाख से अधिक की आबादी रहती है. फ़रीदाबाद नगर निगम सितम्बर 2020 में 1700 झुग्गी और अप्रैल 2021 में 300 से ज़्यादा झुग्गियों पर बुलडोज़र चला चुकी है. फिर भी हरियाणा सरकार झुग्गियों को उजाड़ने में असफल रही. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वह बल प्रयोग कर जनता हटाए जाने की तैयारी कर रही. प्रशासन बन्दूक़ की नोक पर झुग्गियों को तोड़ने के लिए कमर कस चुका है.

कैसे बसा था यह गाँव

खोरी गाँव के बसने की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी. पचास सालों से भू-माफ़िया और दलाल लोगों को यहां की सरकारी ज़मीनें ग़ैर-क़ानूनी रूप से बेचते रहे. पास की पत्थर खदानों में काम करने वाले मज़दूरों ने यहाँ की असमतल भूमि को अपने हाथों से समतल बनाया, गड्ढों और खाइयों को भरकर अपने मकान बनाये. बेहतर रोज़गार की तलाश में गाँव से शहरों में आने वाले प्रवासी मज़दूर भी खोरी गाँव में लगातार ज़मीन ख़रीदकर बसते रहे. 

गाँव से अन्दर और बाहर निकलने के रास्तों पर पुलिस की सख़्त नाकाबन्दी है. गाँव में एक महीने से बिजली और पानी काट दिया गया है. मोबाइल नेटवर्क को भी सीमित कर दिया गया है. महामारी और अनियोजित लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी और भुखमरी से पहले ही जूझ रही जनता के ऊपर यह एक और गाज सरकार द्वारा गिरा दिया गया है. सरकार और न्यायालय के इस अमानवीय बर्ताव से त्रस्त होकर गाँव के पाँच निवासियों ने आत्महत्या कर ली है और एक बुज़ुर्ग की गर्मी से मौत हो गयी. 

जंगल के इलाक़े में बने पाँच-सितारा होटल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि पर सुप्रीम कोर्ट को क्यों आपत्ति नहीं है

अरावली जंगल के इलाक़े में बने पाँच-सितारा होटल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, फ़ार्म हाउस आदि पर सुप्रीम कोर्ट को कोई आपत्ति नहीं है. यह समझना ज़्यादा कठिन नहीं है कि भाजपा सरकार यह दोहरा रवैया क्यों अपना रही है. चूँकि भाजपा सरकार पूँजीवादी राज्य तंत्र के ही पुर्जे़ हैं इसलिए इनका बस एक ही मक़सद है – अपने पूँजीपति आक़ाओं का हित साधना, चाहे इसके लिए उन्हें गरीबों के बच्चों के भविष्य पर बुलडोज़र ही क्यों न चलाना पड़े. 

खोरी गाँव का इलाक़ा औद्योगिक घरानों के लिए सोने की चिड़िया

औद्योगिक घरानों के लिए खोरी गाँव का इलाक़ा सोने की चिड़िया से कम नहीं है.दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली से मैन्युफ़ैक्चरिंग यूनिट हटाने की बात कर उसे सर्विस सेक्टर में बदलने की बात कर रही है. ऐसे में  दिल्ली से लगा यह क्षेत्र उद्योगपतियों के लिए यह सुनहरा अवसर है. मसलन, हरियाणा सरकार हज़ारों घरों को रौंद कर पूरे इलाक़े को पूँजीपति आक़ाओं को भेंट देना चाहती है. जिसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सुगम बना दिया है.

मसलन, खोरी गाँव का मामला जनता और पर्यावरण के बीच का अन्तर्विरोध नहीं है. अगर यह पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा होता तो सुन्दरवन मैन्ग्रोव को पूँजी का खुला चारागाह नहीं बनने दिया जाता. और न ही उत्तराखण्ड के पहाड़ों-जंगल को बिना पर्यावरण नुकसान का मूल्यांकन किये रिलायंस को सुपुर्द कर दिया गया होता.

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