बाबूलाल मरांडी को ही भाजपा क्यों चुनना चाहती है अपना नेता

बाबूलाल मरांडी का विधायक दल का नेता चुना जाना तय

झारखण्ड में राजनीतिक दल या नेतृत्व वाली शख़्सियतों को मौजूदा दौर में टटोलें तो कई सवाल भाजपा पर जा ठहरती हैं। मसलन जब बीते दशक में राज्य मान चुकी थी कि गठबंधन की सियासत ही अंतिम सत्य है, तो क्या छोटा क्या बड़ा दल सभी की भूमिका एक समान दिखने लगी। लेकिन वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम ने पहली बार भाजपा को राजनीतिक शून्यता का आईना दिखाया है। जहाँ भाजपा के पीछे समूचा संघ परिवार भी एकजुट हो जाए तो भी राज्य के मतदाताओं के बीच वह बड़ी लकीर खींच सकती। इसलिए वह किसी दूसरे दल के नेता के आसरे इस लकीर को संतुलित करने के जुगत में दिखी रही है।

यानी भाजपा अगर बाबूलाल के बगैर संसद में दिखे तो उनकी पिछली सत्ता के अपनी ही लोकतंत्र के परिभाषा के अक्स तले वह हेमंत सत्ता के लोकतंत्र से खुद को डिफेंस नहीं कर पाएगी। उनके सामने जो यह सवाल सच बनकर उभरा है, उसका हल उन्हें बाबूलाल मरांडी के छवि दीखता है। क्योंकि राज्य में वोट को बैंक के रुप में खड़ा करने के लिये विकास की जो नयी थ्योरी राजनीतिक तौर परोसी गई, वह कॉरपोरेट लाभ और मुनाफ़ा बनाने के थ्योरी के आगे जाती नहीं है। और कॉरपोरेट भी अब इस सच को समझ चुकी थी कि राजनीतिक दल के तौर पर सरोकार की राजनीति से भाजपा जनता द्वारा दरकिनार किये जा चुके हैं।

 मसलन, बजट सत्र से पहले भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री मुरलीधर राव, जिनके खिलाफ कथित तौर पर 2.17 करोड़ की धोखाधड़ी, सरकार में नामित पद दिलाने को लेकर पैसे लेने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई थी, राँची पहुंच रहे हैं। जो झारखण्ड भाजपा मुख्यालय में होने वाली विधायक दल की बैठक के नेता हो सकते है। साथ ही राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर रविवार को ही राँची पहुंच गये है। अंदेशा यह जताया जा रहा है कि बाबूलाल जी को इसी बैठक में विधायक दल का नेता चुन लिया जाएगा। ताकि जिन झारखंडियात मुद्दों पर भाजपा मौजूदा सरकार को सदन में बाहरी होने दागदार चेहरे के साथ घेर नहीं सकती थी, वह बाबूलालजी को आगे आसानी कर कर सकती है।

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