कुणाल षाड़ंगी ने जिनके डर से पाला बदला, वो फिर से लेके आ गए वही खेला 

जिस प्रकार क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है ठीक उसी प्रकार बड़े बुजुर्ग यह भी कह गए हैं कि राजनीति भी संभावनाओं का खेल है, कब किसका सिक्का कहाँ चलेगा कोई नहीं जानता, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब देख लीजिये यह खबर इसी कहावत सच करती दिखती है। कल तक भाजपा को पानी पी-पी कर कोसने वाले झामुमो के बहरागोड़ा विधायक कुणाल षाड़ंगी अचानक पाला बदलकर उसी भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा, जिसकी नीतियों का वे लगातार विरोध करते रहे थे। 

कुणाल षाड़ंगी ने यूं ही भाजपा का दामन नहीं थाम लिया, इसके पीछे भी बड़ी सियासी वजह है, या यूं कहें कि उनपर एक ‘डर’ हावी था। उनका यह डर उस प्रतिद्वंदी से था जिससे इनका अगामी चुनाव में आमना-सामना होने वाला था। जिसने पिछले चुनाव में जेल में रहने के बावजूद भी 40 हज़ार वोट हासिल किये थे, जी हां उस शख्स का नाम समीर मोहंती है। अब जब कुणाल षाड़ंगी के सबसे बड़े सियासी शत्रु समीर मोहंती की दावेदारी उसी सीट पर भाजपा से सबसे ऊपर थी, जो जेल से बाहर निकल कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, के साथ मौकापरस्ती करते हुए कुणाल षाड़ंगी ने भाजपा का दामन थाम लिया। क्योंकि भाजपा ने कुणाल षाड़ंगी को टिकट देने का ‘सौ फीसदी गारंटी’ दी थी। 

अलबत्ता,  भाजपा से टिकट मिलने की बात तय होते ही कुणाल षाड़ंगी को अब अपने रास्ते में कोई बाधा नजर नहीं आ रही थी। मगर गर्दिसों ने किसे बक्शा है, वही संभावनाओं का खेल फिर उनके सामने आ खड़ा हुआ। क्योंकि समीर मोहंती कहां रुकने वाले थे खबर है कि मोहंती भी अब भाजपा को अलविदा कह झामुमो का दामन थामने का फैसला कर लिया है। बहुत जल्द वे झामुमो में शामिल हो सकते है। ऐसे में अब कुणाल षाड़ंगी जी के लिए तो ये वही बात हो गयी कि खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना। जिसे अपना सियासी मित्र बनाकर चुनावी मैदान फतह करने के सपने देख रहे थे, अब वही फिर से उनका सबसे बड़ा सियासी शत्रु बन चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। खबर तो यह भी है कि दिनेशानंद गोस्वामी भी झामुमो के संपर्क में हैं।

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