एक देश एक चुनाव की वकालत करने वाली भाजपा झारखंड चुनाव से डरी!

आज भारत में फासीवादियों की जो राजनीति देखी जा रही है वह जनतन्त्र के खोल के भीतर राजतंत्र की प्रतिबिम्ब है। जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों के बचे-खुचे दावो पर भी अतिक्रमण के लिए यह प्रहार है। जनतन्त्र की तमाम संस्थाएँ – संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग आदि निरर्थक हो महज फासिस्टों के हाथों के प्यादे बन जाना हैं। क्या भारत के चुनाव आयोग की स्वायत्तता नष्ट नहीं की जा चुकी है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर एक देश एक चुनाव की बात करने वाली राजनीतिक दल भाजपा क्यों झारखंड, हरियाणा व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करवाना चाहती है? यदि झारखंड के लोगों को इन्होंने अच्छे दिन दिखाए हैं तो फिर झारखंड में चुनाव से डर क्यों रही है?

दरअसल, भाजपा रघुवर दास की नीतियों से गुसाए जनता के मूड को भली भांति समझ रही है। साथ ही इसकी एक और वजह झारखंड में नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन के बढ़ते कद को माना जा रहा है। बदनाम हो चुकी संस्था निर्वाचन आयोग, जिसमे नीचे से ऊपर तक संघ-भाजपा के लोग भर जाने की वजह से चुनाव प्रक्रिया की देखरेख करने वाली यह निकाय फासिस्टों के हाथों की महज एक औज़ार भर बन कर रह गयी है। जिस तरह चुनाव आयोग ने भाजपा को फ़ायदा पहुँचाने के लिए गुजरात विधानसभा के चुनाव की तिथियाँ घोषित करने में ड्रामे पर ड्रामे करती रही, ठीक वैसा ही कुछ झारखंड प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी देखा जा सकता है। इस पूरे प्रकरण ने राष्ट्रपति व राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों की ‘’गरिमा’’ पर प्रश्न चिन्ह जरूर अंकित कर दिया है।

बहरहाल, झारखंड की जनता को चुनाव के मायने स्पष्ट रूप से समझते हुए मौजूदा व्यवस्था से आगे जाने की तैयारी करनी होगी। तभी झारखंड व झारखंड के युवा पीढ़ी, माता-बहने बेटियों की अस्मिता व् यहाँ की ज़मीनों की रक्षा की जा सकेगी, कोई तीसरा विकल्प नहीं है। ऐसा करना संभव है क्योंकि एक देश एक चुनाव की वकालत करने वाला दल यदि झारखंड का चुनाव अलग से कराने कि तैयारी कर रही है, तो इस सीधा मतलब है कि मौजूदा सरकार यहाँ की जनता से डरी हुई है। वह नयी रणनीति पर विचार कर रही है -सावधान रहें! 

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