सीएनटी/एसपीटी एक्ट को आखिर भाजपा हटाना क्यों चाहती है?

गोड्डा सांसद, निशिकांत दुबे जो भागलपुर के बासिन्दे हैं, ने अनुच्छेद 370 के बाद झारखंड के सीएनटी/एसपीटी एक्ट में संशोधन की वकालत की हैगोड्डा सांसद के इस बयान पर झारखंड की सियासत गर्म हो गई है नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने इसको लेकर बीजेपी पर हमला बोला दिया है श्री सोरेन ने कहा कि यह बीजेपी की सदैव मंशा रही है कि यहां के आदिवासियों का सुरक्षा कवच तोड़ा जाए अगर ऐसा होगा, तो आदिवासी अपने हक के लिए आवाज़ उठाएंगे क्योंकि झारखंड बीजेपी की जागीर नहीं है यह राज्य आदिवासियों व मूलवासियों के लिए बना है वहीं झारखंड के अर्जुन मुंडा सरीखे आदिवासी नेताओं का इस पर चुप्पी झारखंडी चेतना को जरूर कुरेदती है।

(सीएनटी/एसपीटी) छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 एवं संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 में भारी विरोध के बावजूद सरकार ने 2016 में बिना बहस कराये महज तीन मिनट में संशोधन को पारित कर दिया था। हालांकि तब सफल न हो सके, लेकिन अब गुपचुप तौर पर इसे ख़त्म करने को अमादा है। इतिहास गवाह है कि अंग्रेजो के लगान वसूली के खिलाफ 1774 में बाबा तिलका मांझी के नेतृत्व में शुरू हुआ संघर्ष, संघर्ष संताल हुल, कोल विद्रोह तथा बिरसा उलगुलान के रूप में हजारों आदिवासियों की शहादत ली, तब जा कर इन्हें सीएनटी/एसपीटी कानून मिला। क्या इस विरासत को खत्म करने का किसी को हक है?

आखिर भाजपा इसे हटाना क्यों चाहती है?

इस कानून में संशोधन कर सरकार राज्य के कृषि भूमि को गैर-कृषि घोषित कर, राज्य के विकास के नाम पर यहाँ के कृषि भूमि को पूंजीपति कारपोरेट घरानों व व्यापारियों को सौपना चाहती है, ताकि यहाँ के जमीन से एक प्रतिशत लगान वसूल सके और अपने चुनावी चंदे का कर्ज उतार सके। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना कानून 2013 के धारा- 10 के अनुसार कोई भी विकास कार्य के लिए कृषि भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता, यदि अनिवार्य स्थिति में ऐसा होता है तो रैयत को जमीन का मुआवजा और पुनर्वास के साथ अधिगृहित कृषि भूमि के बराबर अन्य जगह खेती की जमीन उपलब्ध करानी होगी। 

सरकार ने जानबूझकर राज्य में अब तक भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना कानून 2013 को लागू नहीं किया है। इस कानून से बचने के लिए कृषि भूमि की प्रकृति को ही गैर-कृषि में बदल देना चाहती है। ताकि रैयत यदि ज़बरदस्ती अधिग्रहण के समय न्यायालय का शरण लें तो सरकार कृषि जमीन को गैर-कृषि बताकर बच सके। साथ ही कृषि भूमि पर गैर-कानूनी निर्मित अपार्टमेंट, होटल, शॉपिंग माल, मैरिज हाल या अन्य तरह के व्यापारिक प्रतिष्ठानों को एक प्रतिशत गैर-कृषि लगान देकर नियमित कर सके, मतलब गैर-कानूनी कार्य कानूनी हो जायेगा। मसलन, किसी भी सूरत में सरकार के यह कदम रुकने ही चाहिए।

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