
मनरेगा, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को लाने के पीछे गाँवों, शहरों में रह रहे लोगों को प्रति वर्ष 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना था. प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी सदन में मनरेगा पर दिए गये अपने वक्तव्य में कहा था कि “मनरेगा को मैं कभी बंद नहीं करूँगा”. मगर झारखण्ड में भाजपा की रघुबर सरकार को देख कर लगता है कि उन्होंने प्रत्येक चीज़ को उल्टा ही करने का मन बनाए हुए है.
गरीबों के जीवन यापन में संजीवनी माने जानी वाली इस योजना का तो झारखण्ड सरकार ने गला ही घोंट दिया है. केंद्र पोषित इस योजना में झारखण्ड में कुल 30 लाख सक्रीय कामगार हैं. हालांकि मनरेगा के बजट में पहले के मुकाबले 200 करोड़ रुपये (700 करोड़) की वृद्धि हुई, मगर जानभूझ कर आदिवासी और दलितों को उनके काम के अधिकारों से वंचित किया जा है. आदिवासी और दलित विरोधी इस सरकार की कारस्तानी के कारण 2014-15 में जिन 14 प्रतिशत दलित एवं 36 प्रतिशत आदिवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार मिलता था, वह 2017-18 में घटकर क्रमशः 11 प्रतिशत एवं 29 प्रतिशत रह गया. गौतलब यह भी है कि विगत दो वर्षो में कम से कम भूख से मरने वाले 18 लोगों को मनरेगा का जॉब कार्ड होते हुए भी उन्हें महीनों-सालों से काम नहीं मिला था. दुर्भाग्य की बात है कि खुद आदिवासी होकर भी ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुण्डा इसे लेकर तनिक भी चिंचित नहीं हैं. ऐसा जान पड़ता है मानो उनका दायित्व झारखण्ड के लोगों के लिये नहीं बल्कि चीन के लोगों के लिये है या यह भी हो सकता है कि अपनी सरकार के मुखिया के आगे उनकी जबान दबी की दबी रह जाती होगी.
साल दर साल, झारखण्ड सुखाड़ जैसी गंभीर समस्याओं को झेलता रहता है मगर उसके विपरीत पहले से कदम उठाने के बजाय यहाँ की सरकार कान में तेल डाले ऐसी बैठी है जैसी कोई बात ही नहीं हुई हो. अब जब झारखण्ड सुखाड़ की विकट स्थिति को झेल रहा है तो सरकार को याद आयी है कि कई मनरेगा मजदूरों को अगस्त महीने से भुगतान नहीं दिया गया है.
मनरेगा मजदूरों की समस्या झारखण्ड के अगुवा मीडिया एजेंसियों के लिये शायद कोई माद्दा नहीं रखती हो मगर ऐसी कई सामाजिक संगठन एवं राजनैतिक पार्टिया हैं जिन्होंने इन ग़रीब लोगों की व्यथा सुन उनके अधिकारों के लिये बेड़ा उठा रखा है. पिछले हफ्ते ही झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने अपनी विस्तारित बैठक में प्रदेश सरकार को मनरेगा पर उनके द्वारा अपनाए जा रहे ढील-ढाले रवैये के लिये खरीखोटी सुनाई और सरकार को घेरने के लिये ‘रोजगार दो सरकार’ नामक अभियान की शुरुआत भी की. मिली जानकारी के अनुसार झामुमो कार्यकर्ता पूरे राज्य में प्रखंड तथा पंचायत वार जा जाकर लोगों से मनरेगा के तहत रोजगार मांगने की अपील कर रहे हैं.
झामुमो की यह सक्रीयता कुछ हद तक सफल भी दिख रही है क्योंकि भाजपा आये दिन लगातार मनरेगा में काम बढाने की पैरवी कर रही है. मगर सरकार की असल मंशा, उनके दिखावटी चेहरे और लोगों का आक्रोश देखकर तो यही लगता है कि जनता सरकार से लोहा लेने के लिये उतारू है और आने वाले दिनों में सरकार को परिणाम भुगतने को मजबूर कर देगी. अंततः मनरेगा को मुद्दा बनाकर झामुमो ने विपक्षी पार्टियों के लिए एक नया एवं सशक्त हथियार दे दिया है जिसकी पहुँच कृषि ऋण माफ़ी जैसे अस्त्रों से भी व्यापक है.